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फ़िराक़ में ख़ून-ए-दिल हैं पीते शराब हम ले के क्या करेंगे - ज़ेबा कविता - Darsaal

फ़िराक़ में ख़ून-ए-दिल हैं पीते शराब हम ले के क्या करेंगे

फ़िराक़ में ख़ून-ए-दिल हैं पीते शराब हम ले के क्या करेंगे

हमारा दिल आप भुन रहा है कबाब हम ले के क्या करेंगे

जो उन से कहता हूँ यार हाज़िर है ये हमारा दिल-ए-शिकस्ता

तो हँस के कहते हैं नाज़ से वो जनाब हम ले के क्या करेंगे

नहीं है फ़ुर्सत यहीं के झगड़ों से फ़िक्र-ए-उक़्बा कहाँ की वाइ'ज़

अज़ाब-ए-दुनिया है हम को क्या कम सवाब हम ले के क्या करेंगे

सवाल बे-सूद जानते हैं रहें न ख़ामोश तो करें क्या

एवज़ में बोसे के तुम से साहब जवाब हम ले के क्या करेंगे

ये क़ौल है रहमत-ए-ख़ुदा का डरो न तुम ऐ गुनाहगारो

शुमार-ए-इस्याँ अगर नहीं है हिसाब हम ले के क्या करेंगे

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