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ताज़ा है उस की महक रात की रानी की तरह - ज़ेब ग़ौरी कविता - Darsaal

ताज़ा है उस की महक रात की रानी की तरह

ताज़ा है उस की महक रात की रानी की तरह

किसी बिछड़े हुए लम्हे की निशानी की तरह

जितना देखो उसे थकती नहीं आँखें वर्ना

ख़त्म हो जाता है हर हुस्न कहानी की तरह

रेग-ए-सहरा का अजब रंग हवाओं ने किया

नक़्श सा खिंच गया दरिया की रवानी की तरह

यूँ गुज़रता है वो कतरा के नवाह-ए-दिल से

जैसे ये ख़ाक का ख़ित्ता भी हो पानी की तरह

मुझ से क्या कुछ न सबा कह के गई है ऐ 'ज़ेब'

चंद ही लफ़्ज़ों में पैग़ाम-ए-ज़बानी की तरह

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