ताज़ा है उस की महक रात की रानी की तरह
ताज़ा है उस की महक रात की रानी की तरह
किसी बिछड़े हुए लम्हे की निशानी की तरह
जितना देखो उसे थकती नहीं आँखें वर्ना
ख़त्म हो जाता है हर हुस्न कहानी की तरह
रेग-ए-सहरा का अजब रंग हवाओं ने किया
नक़्श सा खिंच गया दरिया की रवानी की तरह
यूँ गुज़रता है वो कतरा के नवाह-ए-दिल से
जैसे ये ख़ाक का ख़ित्ता भी हो पानी की तरह
मुझ से क्या कुछ न सबा कह के गई है ऐ 'ज़ेब'
चंद ही लफ़्ज़ों में पैग़ाम-ए-ज़बानी की तरह
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