रंग-ए-ग़ज़ल में दिल का लहू भी शामिल हो
रंग-ए-ग़ज़ल में दिल का लहू भी शामिल हो
ख़ंजर जैसा भी हो लेकिन क़ातिल हो
इस तस्वीर का आब ओ रंग नहीं बदला
जाने कब ये दिल का नक़्श भी बातिल हो
शोर-ए-फ़ुग़ाँ पर इतनी बेचैनी कैसी
तुम से क्या तुम कौन किसी के क़ातिल हो
देख कभी आ कर ये ला-महदूद फ़ज़ा
तू भी मेरी तन्हाई में शामिल हो
मैं कि हूँ एक थका-हारा और माँदा शख़्स
मेरी अना कहती है मेरे मुक़ाबिल हो
'ज़ेब' सवाल अब ये है तुझे पहचाने कौन
किस की नज़र इस गहराई की हामिल हो
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