जाग के मेरे साथ समुंदर रातें करता है
जाग के मेरे साथ समुंदर रातें करता है
जब सब लोग चले जाएँ तो बातें करता है
शाम को देर से पहुँचूँ तो लगता है ख़फ़ा मुझ से
मुझ से बहुत बरहम हो ऐसी घातें करता है
मेरे सिवा शायद उस का भी कोई दोस्त नहीं
मेरी अपनी जाने क्या क्या बातें करता है
दिल ग़म से बोझल हो तो देखो फिर छेड़ें उस की
छींटे मुँह पे मार के क्या बरसातें करता है
और भी गहरी हो जाती है उस की सरगोशी
मुझ से किसी की आँखों की जब बातें करता है
मुझ को मोतियों से क्या लेना 'ज़ेब' समुंदर भी
जाने क्या मिरे अश्कों की सौग़ातें करता है
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