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ग़ार के मुँह से ये चट्टान हटाने के लिए - ज़ेब ग़ौरी कविता - Darsaal

ग़ार के मुँह से ये चट्टान हटाने के लिए

ग़ार के मुँह से ये चट्टान हटाने के लिए

कोई नेकी भी नहीं याद दिलाने के लिए

इक निगाह-ए-ग़लत-अंदाज़ का इम्काँ निकला

कुछ ज़मीं और मिली पाँव बढ़ाने के लिए

उस की राहों में पड़ा मैं भी हूँ कब से लेकिन

भूल जाता हूँ उसे याद दिलाने के लिए

सुब्ह दरवेशों ने फिर राह ली अपनी अपनी

मैं भी बैठा था वहाँ क़िस्सा सुनाने के लिए

वो मिरे साथ तो कुछ दूर चला था लेकिन

खो गया ख़ुद भी मुझे राह पे लाने के लिए

एक शब ही तो बसर करना है इस दश्त में 'ज़ेब'

कुछ भी मिल जाए यहाँ सर को छुपाने के लिए

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