Ghazals of Zeb Ghauri (page 1)
नाम | ज़ेब ग़ौरी |
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अंग्रेज़ी नाम | Zeb Ghauri |
जन्म की तारीख | 1928 |
मौत की तिथि | 1985 |
जन्म स्थान | Kanpur |
ज़ख़्म पुराने फूल सभी बासी हो जाएँगे
वो और मोहब्बत से मुझे देख रहा हो
उस के क़ुर्ब के सारे ही आसार लगे
उजड़ी हुई बस्ती की सुब्ह ओ शाम ही क्या
तू पशेमाँ न हो मैं शाद हूँ नाशाद नहीं
ठहरा वही नायाब कि दामन में नहीं था
ताज़ा है उस की महक रात की रानी की तरह
सूरज ने इक नज़र मिरे ज़ख़्मों पे डाल के
सितमगरों का तरीक़-ए-जफ़ा नहीं जाता
शोला-ए-मौज-ए-तलब ख़ून-ए-जिगर से निकला
शहर में हम से कुछ आशुफ़्ता-दिलाँ और भी हैं
सेहन-ए-चमन में जाना मेरा और फ़ज़ा में बिखर जाना
रास्ते में कहीं खोना ही तो है
रंग-ए-ग़ज़ल में दिल का लहू भी शामिल हो
रात दमकती है रह रह कर मद्धम सी
पहले मुझ को भी ख़याल-ए-यार का धोका हुआ
नक़्श-ए-तस्वीर न वो संग का पैकर कोई
न अब्र से तिरा साया न तू निकलता है
मुराद-ए-शिकवा नहीं लुत्फ़-ए-गुफ़्तुगू के सिवा
मुझ से ऐसे वामांदा-ए-जाँ को बिस्तर-विस्तर क्या
मेरा अदम वजूद भी क्या ज़र-निगार था
मौज़ू-ए-सुख़न हिम्मत-ए-आली ही रहेगी
मौज-ए-रेग सराब-सहरा कैसे बनती है
मौजा-ए-ग़म में रवानी भी तो हो
मरने का सुख जीने की आसानी दे
मैं तिश्ना था मुझे सर-चश्मा-ए-सराब दिया
मैं छू सकूँ तुझे मेरा ख़याल-ए-ख़ाम है क्या
मैं अक्स-ए-आरज़ू था हवा ले गई मुझे
लहर लहर क्या जगमग जगमग होती है
लगाऊँ हाथ तुझे ये ख़याल-ए-ख़ाम है क्या