ज़ेब ग़ौरी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का ज़ेब ग़ौरी
नाम | ज़ेब ग़ौरी |
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अंग्रेज़ी नाम | Zeb Ghauri |
जन्म की तारीख | 1928 |
मौत की तिथि | 1985 |
जन्म स्थान | Kanpur |
'ज़ेब' मुझे डर लगने लगा है अपने ख़्वाबों से
'ज़ेब' अब ज़द में जो आ जाए वो दिल हो कि निगाह
ज़ख़्म लगा कर उस का भी कुछ हाथ खुला
ज़ख़्म ही तेरा मुक़द्दर हैं दिल तुझ को कौन सँभालेगा
ये कम है क्या कि मिरे पास बैठा रहता है
ये डूबती हुई क्या शय है तेरी आँखों में
वो मेरे सामने ख़ंजर-ब-कफ़ खड़ा था 'ज़ेब'
उस की राहों में पड़ा मैं भी हूँ कब से लेकिन
उलट रही थीं हवाएँ वरक़ वरक़ उस का
उड़ा के ख़ाक बहुत मैं ने देख ली ऐ 'ज़ेब'
टूटती रहती है कच्चे धागे सी नींद
तूफ़ाँ में नाव आई तो क्या सम्त क्या निशाँ
थक गया एक कहानी सुनते सुनते मैं
तेरे सामने आते हुए घबराता हूँ
तलाश एक बहाना था ख़ाक उड़ाने का
सूरज ने इक नज़र मिरे ज़ख़्मों पे डाल के
शेर तो मुझ से तेरी आँखें कहला लेती हैं
शायद अब भी कोई शरर बाक़ी हो 'ज़ेब'
संग-ए-बेहिस से उठी मौज-ए-सियह-ताब कोई
फिर एक नक़्श का नैरंग 'ज़ेब' बिखरेगा
न जाने क्या है कि जब भी मैं उस को देखता हूँ
मुझ से बिछड़ कर होगा समुंदर भी बेचैन
मिरी जगह कोई आईना रख लिया होता
मैं ने देखा था सहारे के लिए चारों तरफ़
मैं ने बेताबाना बढ़ कर दश्त में आवाज़ दी
मैं तो चाक पे कूज़ा-गर के हाथ की मिट्टी हूँ
मैं तिश्ना था मुझे सर-चश्मा-ए-सराब दिया
मैं पयम्बर तिरा नहीं लेकिन
मैं लाख इसे ताज़ा रखूँ दिल के लहू से
महकती ज़ुल्फ़ों से ख़ोशे गुलों के छूट गिरे