न आँसुओं में कभी था न दिल की आह में है
न आँसुओं में कभी था न दिल की आह में है
तमाश-बीन हमेशा से रक़्स-गाह में है
ब-नाम-ए-इश्क़ मिरी ज़िंदगी तिरे क़ुर्बां
मगर नसीब मिरा बे-तलब निबाह में है
मैं जानता हूँ कि है किस की आँख का आँसू
वो एक ला'ल जो अब तक मिरी कुलाह में है
दिलों के रिश्ते हैं सब अलविदाई मंज़िल में
कि ना-गुज़ीर अज़िय्यत हर एक चाह में है
नमाज़-ए-ईद कई साल से न पढ़ पाया
ब-नाम-ए-मौत कोई ख़ौफ़ ईद-गाह में है
ये मेरी फ़िक्र नए दौर की अमानत है
कि आने वाली सदी भी मिरी निगाह में है
ये इत्तिफ़ाक़ भी इक इंहिराफ़ है गोया
मिरा 'ज़मीर' अभी तक मिरी पनाह में है
(2041) Peoples Rate This