मेरे ख़ुर्शीद ओ क़मर आए नहीं
ज़ुल्मतों के चारा-गर आए नहीं
फ़स्ल-ए-गुल की ख़ासियत को क्या हुआ
शाख़-ए-दिल पर बर्ग-ओ-बर आए नहीं
ख़स्ता-सामानी हमारी देखने
लोग आते थे मगर आए नहीं
मैं फ़क़त बाग़ों का रखवाला रहा
मेरे हिस्से में समर आए नहीं
गदले जोहड़ चीथडों सी बस्तियाँ
अहल-ए-दिल क्या इस नगर आए नहीं