ख़ुद अपनी सोच के पंछी न अपने बस में रहे
ख़ुद अपनी सोच के पंछी न अपने बस में रहे
खुली फ़ज़ा की तमन्ना थी और क़फ़स में रहे
बिछड़ के मुझ से अज़ाब उन पे भी बहुत गुज़रे
वो मुतमइन न किसी पल किसी बरस में रहे
मैं एक उम्र से उन को तलाश करता हूँ
कुछ ऐसे लम्हे थे जो अपनी दस्तरस में रहे
लहू का ज़ाइक़ा कड़वा सा लग रहा है मुझे
मैं चाहता हूँ कि कुछ तो मिठास रस में रहे
किसी का क़ुर्ब मिरे दिल की रौशनी ठहरे
किसी के आने से ख़ुश्बू मिरे नफ़स में रहे
सुना है उस की गुज़रती है ताज़ा फूलों में
'ज़मान' जिस के लिए शहर ख़ार-ओ-ख़स में रहे
(1393) Peoples Rate This