लबों की जुम्बिश नवा-ए-बुलबुल है शोख़ लहजा तिरा क़यामत
लबों की जुम्बिश नवा-ए-बुलबुल है शोख़ लहजा तिरा क़यामत
दराज़ क़ामत ग़ज़ाल आँखें गुलाब चेहरा तिरा क़यामत
घटाएँ ज़ुल्फ़ें ख़ुमार पलकें महीन आँचल पे माह-ओ-अंजुम
सुहानी रातों की चाँदनी में है छत पे जल्वा तिरा क़यामत
ज़मीन-ए-दिल पर अदा-ए-दिलबर चलाए नश्तर उठाए महशर
नज़र उठाना नज़र झुकाना हर एक हर्बा तिरा क़यामत
गुलों की लाली शगुफ़्ता आरिज़ पे फ़स्ल-ए-गुल की सफ़ीर ठहरी
नशीले लब की हलावातों से धड़कता नग़्मा तिरा क़यामत
जो तू ने खोले हवा में गेसू महक उठा है तमाम गुलशन
हसीन सुम्बुल के दरमियाँ है दमकता चेहरा तिरा क़यामत
तिरे शबिस्ताँ के गोशे गोशे में रौशनी का ज़ुहूर हर-पल
अक़ीदतों के दिए से रौशन नफ़ीस कमरा तिरा क़यामत
कँवल बदन पर मचलती साँसें छलकते साग़र की तर्जुमाँ है
गुदाज़ बाँहें सुराही गर्दन सरापा नक़्शा तिरा क़यामत
वफ़ाएँ मुझ से जफ़ाएँ मुझ से अदाएँ हर-पल यही हैं 'ज़ाकिर'
कभी है ग़म्ज़ा कभी है इश्वा ये नाज़ नख़रा तिरा क़यामत
(1313) Peoples Rate This