Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_5aed21aa5ad595ee6ccdd705dc9eaa02, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
दर्द को ज़ब्त की सरहद से गुज़र जाने दो - ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर कविता - Darsaal

दर्द को ज़ब्त की सरहद से गुज़र जाने दो

दर्द को ज़ब्त की सरहद से गुज़र जाने दो

अब समेटो न हमें और बिखर जाने दो

हम से होगा न कभी अपनी ख़ुदी का सौदा

हम अगर दिल से उतरते हैं उतर जाने दो

तुम तअ'य्युन न करो अपनी हदों का हरगिज़

जब भी जैसे भी जहाँ जाए नज़र जाने दो

इतना काफ़ी है कि वो साथ नहीं है मेरे

क्यूँ हुआ कैसे हुआ चाक जिगर जाने दो

दिल जलाओ कि तख़य्युल का जहाँ रौशन हो

तीरगी ख़त्म करो रात सँवर जाने दो

इश्क़ सानी है तो फिर उस में शिकायत कैसी

हम न कहते थे कि इक ज़ख़्म है भर जाने दो

यार मा'मूल पे लौट आएँगे कुछ सब्र करो

उस फ़ुसूँ-गर की निगाहों का असर जाने दो

शर्त जीना है भटकना तो बहाना है फ़क़त

वो जिधर जाता है हर शाम-ओ-सहर जाने दो

मैं ने रोका था उसे इस का हवाला दे कर

रूठ कर फिर भी वो जाता है अगर जाने दो

ख़ुश-गुमाँ है वो बहुत जीत पे अपनी 'ज़ाकिर'

हम भी चल सकते थे इक चाल मगर जाने दो

(1734) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Dard Ko Zabt Ki Sarhad Se Guzar Jaane Do In Hindi By Famous Poet Zakir Khan Zakir. Dard Ko Zabt Ki Sarhad Se Guzar Jaane Do is written by Zakir Khan Zakir. Complete Poem Dard Ko Zabt Ki Sarhad Se Guzar Jaane Do in Hindi by Zakir Khan Zakir. Download free Dard Ko Zabt Ki Sarhad Se Guzar Jaane Do Poem for Youth in PDF. Dard Ko Zabt Ki Sarhad Se Guzar Jaane Do is a Poem on Inspiration for young students. Share Dard Ko Zabt Ki Sarhad Se Guzar Jaane Do with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.