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चुप के सहरा में फ़क़त एक सदा कौन हूँ मैं - ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर कविता - Darsaal

चुप के सहरा में फ़क़त एक सदा कौन हूँ मैं

चुप के सहरा में फ़क़त एक सदा कौन हूँ मैं

ऐ ख़ुदा तू ही बता मुझ को ज़रा कौन हूँ मैं

डूबता हूँ तो उभर जाता हूँ लम्हा-भर मैं

किस के होंटों पे हूँ मैं हर्फ़-ए-दुआ कौन हूँ मैं

अपनी ही ज़ात की तशरीह नहीं कर सकता

रोक लेती है मुझे मेरी अना कौन हूँ मैं

वस्ल ने मेरे तशख़्ख़ुस को सँभाले रक्खा

हिज्र-ओ-वहशत से कभी पूछ ज़रा कौन हूँ मैं

मैं ज़मीं-ज़ाद भुला बैठा हूँ मंसब अपना

है ख़बर अपनी न अपना है पता कौन हूँ मैं

उस के जाने से ये महसूस हुआ है 'ज़ाकिर'

है मिरी रूह अलग जिस्म जुदा कौन हूँ मैं

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