भरे तो कैसे परिंदा भरे उड़ान कोई

भरे तो कैसे परिंदा भरे उड़ान कोई

नहीं है तीर से ख़ाली यहाँ कमान कोई

थीं आज़माइशें जितनी तमाम मुझ पे हुईं

न बच के जाएगा अब मुझ से इम्तिहान कोई

ये तोता मैना के क़िस्से बहुत पुराने हैं

हमारे अहद की अब छेड़ो दास्तान कोई

नए ज़माने की ऐसी कुछ आँधियाँ उट्ठीं

रहा सफ़ीने पे बाक़ी न बादबान कोई

बिखर के रह गईं रिश्तों की सारी ज़ंजीरें

बचा सका न रिवायत को ख़ानदान कोई

'ज़की' हमारा मुक़द्दर हैं धूप के ख़ेमे

हमें न रास कभी आया साएबान कोई

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