ये रात यूँही बसर हो गई तो क्या होगा
तिरे बग़ैर सहर हो गई तो क्या होगा
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तू ही बता दे कैसे काटूँ
जुनूँ के कैफ़-ओ-कम से आगही तुझ को नहीं नासेह
कारवाँ तो निकल गया कोसों
वाए नाकामी-ए-क़िस्मत कि भँवर से बच कर
तिरी जवान उमंगों को हो गया है क्या
दिल है बीमार क्या करे कोई
रुमूज़-ए-इश्क़ की गहराइयाँ सलामत हैं
दर्द-ए-दिल ने ली न थी करवट अभी
ऐ दिल तिरी आहों में इतना तो असर आए
अहल-ए-दिल ने किए तामीर हक़ीक़त के सुतूँ
याद आए हैं उफ़ गुनह क्या क्या