वो तिरी ज़ुल्फ़ का साया हो कि आग़ोश तिरा
मिल गया हो कभी आराम मुझे याद नहीं
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जुनूँ के कैफ़-ओ-कम से आगही तुझ को नहीं नासेह
मरने के बअ'द कोई पशेमाँ हुआ तो क्या
तिरी जुस्तुजू तिरी आरज़ू मुझे काम तेरे ही काम से
दिल है बीमार क्या करे कोई
शिकवा नहीं दुनिया के सनम-हा-ए-गिराँ का
बुरी तक़दीर के रोने से हासिल
मैं ने तन्हाइयों के लम्हों में
तिरे नाज़-ओ-अदा को तेरे दीवाने समझते हैं
वाए नाकामी-ए-क़िस्मत कि भँवर से बच कर
ये रात यूँही बसर हो गई तो क्या होगा
रुमूज़-ए-इश्क़ की गहराइयाँ सलामत हैं
लोग कहते रहे क़रीब है वो