वाए नाकामी-ए-क़िस्मत कि भँवर से बच कर
लब-ए-साहिल पे जो आए तो कगारा टूटा
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साग़र-ओ-जाम को छलकाओ कि कुछ रात कटे
तिरी जुस्तुजू तिरी आरज़ू मुझे काम तेरे ही काम से
मुझ को सुकूँ की चैन की पज़मुर्दगी से क्या
हुस्न जिस हाल में नज़र आया
उलझी थीं जिन नसीम से कलियाँ ख़बर न थी
रुमूज़-ए-इश्क़ की गहराइयाँ सलामत हैं
ऐ दिल तिरी आहों में इतना तो असर आए
आज फिर उन से मुलाक़ात पे रोना आया
याद इतना है कि मैं होश गँवा बैठा था
दूसरों को फ़रेब दे दे कर
ये रात यूँही बसर हो गई तो क्या होगा