उलझी थीं जिन नसीम से कलियाँ ख़बर न थी
पहुँचेगी बू-ए-नाज़ मिरे पैरहन से दूर
Anwar Masood
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Gulzar
Rahat Indori
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(865) Peoples Rate This
तिरे नाज़-ओ-अदा को तेरे दीवाने समझते हैं
शिकवा नहीं दुनिया के सनम-हा-ए-गिराँ का
तू ही बता दे कैसे काटूँ
ये रात यूँही बसर हो गई तो क्या होगा
दिल है बीमार क्या करे कोई
रुमूज़-ए-इश्क़ की गहराइयाँ सलामत हैं
जुनूँ के कैफ़-ओ-कम से आगही तुझ को नहीं नासेह
साफ़ कहिए कि प्यार करते हैं
बुरी तक़दीर के रोने से हासिल
आज फिर उन से मुलाक़ात पे रोना आया
वो तिरी ज़ुल्फ़ का साया हो कि आग़ोश तिरा
मैं ने तन्हाइयों के लम्हों में