शिकवा नहीं दुनिया के सनम-हा-ए-गिराँ का
अफ़सोस कि कुछ फूल तुम्हारे भी मिले हैं
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मुझ को सुकूँ की चैन की पज़मुर्दगी से क्या
दर्द-ए-दिल ने ली न थी करवट अभी
आप पर जब से तबीअत आई
मरने के बअ'द कोई पशेमाँ हुआ तो क्या
तिरी जवान उमंगों को हो गया है क्या
हुस्न जिस हाल में नज़र आया
बुरी तक़दीर के रोने से हासिल
याद आए हैं उफ़ गुनह क्या क्या
ये रात यूँही बसर हो गई तो क्या होगा
वो तिरी ज़ुल्फ़ का साया हो कि आग़ोश तिरा
दूसरों को फ़रेब दे दे कर