साफ़ कहिए कि प्यार करते हैं
ये निगाहों का क़ौल-ए-मुबहम क्या
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साग़र-ओ-जाम को छलकाओ कि कुछ रात कटे
दर्द-ए-दिल ने ली न थी करवट अभी
मंज़िल जिसे समझते थे यारान-ए-क़ाफ़िला
वो तिरी ज़ुल्फ़ का साया हो कि आग़ोश तिरा
तिरी जवान उमंगों को हो गया है क्या
तू ही बता दे कैसे काटूँ
मैं ने तन्हाइयों के लम्हों में
हुस्न जिस हाल में नज़र आया
बुरी तक़दीर के रोने से हासिल
तिरी जुस्तुजू तिरी आरज़ू मुझे काम तेरे ही काम से
कारवाँ तो निकल गया कोसों
वाए नाकामी-ए-क़िस्मत कि भँवर से बच कर