मरने के बअ'द कोई पशेमाँ हुआ तो क्या
मातम-कदा जो गोर-ए-ग़रीबाँ हुआ तो क्या
Gulzar
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आप पर जब से तबीअत आई
याद इतना है कि मैं होश गँवा बैठा था
साग़र-ओ-जाम को छलकाओ कि कुछ रात कटे
जुनूँ के कैफ़-ओ-कम से आगही तुझ को नहीं नासेह
याद आए हैं उफ़ गुनह क्या क्या
कितने ही फूल चुन लिए मैं ने
वाए नाकामी-ए-क़िस्मत कि भँवर से बच कर
मैं ने तन्हाइयों के लम्हों में
साफ़ कहिए कि प्यार करते हैं
मुझ को सुकूँ की चैन की पज़मुर्दगी से क्या
अक़्ल ने तर्क-ए-तअल्लुक़ को ग़नीमत जाना
वो तिरी ज़ुल्फ़ का साया हो कि आग़ोश तिरा