लोग कहते रहे क़रीब है वो
हम ने ढूँडा तो दूर दूर न था
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जुनूँ के कैफ़-ओ-कम से आगही तुझ को नहीं नासेह
अहल-ए-दिल ने किए तामीर हक़ीक़त के सुतूँ
ये रात यूँही बसर हो गई तो क्या होगा
याद आए हैं उफ़ गुनह क्या क्या
मुझ को सुकूँ की चैन की पज़मुर्दगी से क्या
वाए नाकामी-ए-क़िस्मत कि भँवर से बच कर
तिरी जवान उमंगों को हो गया है क्या
तिरी जुस्तुजू तिरी आरज़ू मुझे काम तेरे ही काम से
वो तिरी ज़ुल्फ़ का साया हो कि आग़ोश तिरा
शिकवा नहीं दुनिया के सनम-हा-ए-गिराँ का
आज फिर उन से मुलाक़ात पे रोना आया
कारवाँ तो निकल गया कोसों