कारवाँ तो निकल गया कोसों
राह भटके हुए कहाँ जाएँ
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ये रात यूँही बसर हो गई तो क्या होगा
साफ़ कहिए कि प्यार करते हैं
दर्द-ए-दिल ने ली न थी करवट अभी
याद इतना है कि मैं होश गँवा बैठा था
तिरी जुस्तुजू तिरी आरज़ू मुझे काम तेरे ही काम से
तू ही बता दे कैसे काटूँ
मुझ को सुकूँ की चैन की पज़मुर्दगी से क्या
तिरे नाज़-ओ-अदा को तेरे दीवाने समझते हैं
अक़्ल ने तर्क-ए-तअल्लुक़ को ग़नीमत जाना
हुस्न जिस हाल में नज़र आया
ऐ दिल तिरी आहों में इतना तो असर आए