दूसरों को फ़रेब दे दे कर
हम ने ख़ुद भी फ़रेब खाया है
Habib Jalib
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Wasi Shah
Gulzar
Mir Taqi Mir
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आप पर जब से तबीअत आई
वो तिरी ज़ुल्फ़ का साया हो कि आग़ोश तिरा
लोग कहते रहे क़रीब है वो
मंज़िल जिसे समझते थे यारान-ए-क़ाफ़िला
अक़्ल ने तर्क-ए-तअल्लुक़ को ग़नीमत जाना
साफ़ कहिए कि प्यार करते हैं
आज फिर उन से मुलाक़ात पे रोना आया
वाए नाकामी-ए-क़िस्मत कि भँवर से बच कर
साग़र-ओ-जाम को छलकाओ कि कुछ रात कटे
मैं ने तन्हाइयों के लम्हों में
दर्द-ए-दिल ने ली न थी करवट अभी
उलझी थीं जिन नसीम से कलियाँ ख़बर न थी