दर्द-ए-दिल ने ली न थी करवट अभी
उन के माथे पे पसीना आ गया
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शिकवा नहीं दुनिया के सनम-हा-ए-गिराँ का
कारवाँ तो निकल गया कोसों
साग़र-ओ-जाम को छलकाओ कि कुछ रात कटे
अक़्ल ने तर्क-ए-तअल्लुक़ को ग़नीमत जाना
वो तिरी ज़ुल्फ़ का साया हो कि आग़ोश तिरा
दूसरों को फ़रेब दे दे कर
तिरी जुस्तुजू तिरी आरज़ू मुझे काम तेरे ही काम से
मंज़िल जिसे समझते थे यारान-ए-क़ाफ़िला
तू ही बता दे कैसे काटूँ
मैं ने तन्हाइयों के लम्हों में
तिरे नाज़-ओ-अदा को तेरे दीवाने समझते हैं
दिल है बीमार क्या करे कोई