बुरी तक़दीर के रोने से हासिल
तलब हो गर तो वीराने बहुत हैं
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दिल है बीमार क्या करे कोई
आज फिर उन से मुलाक़ात पे रोना आया
आप पर जब से तबीअत आई
तू ही बता दे कैसे काटूँ
वो तिरी ज़ुल्फ़ का साया हो कि आग़ोश तिरा
कितने ही फूल चुन लिए मैं ने
मैं ने तन्हाइयों के लम्हों में
हुस्न जिस हाल में नज़र आया
जुनूँ के कैफ़-ओ-कम से आगही तुझ को नहीं नासेह
तिरी जवान उमंगों को हो गया है क्या
दर्द-ए-दिल ने ली न थी करवट अभी
कारवाँ तो निकल गया कोसों