Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_5114eb5d415cd0291e09359062a4b66d, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
तिरे नाज़-ओ-अदा को तेरे दीवाने समझते हैं - ज़की काकोरवी कविता - Darsaal

तिरे नाज़-ओ-अदा को तेरे दीवाने समझते हैं

तिरे नाज़-ओ-अदा को तेरे दीवाने समझते हैं

हक़ीक़त शम्अ' की क्या है ये परवाने समझते हैं

मुकम्मल वारदातें हैं मिरे गुज़रे ज़माने की

हक़ाएक़ से जो ना-वाक़िफ़ हैं अफ़्साने समझते हैं

जुनूँ के कैफ़-ओ-कम से आगही तुझ को नहीं नासेह

गुज़रती है जो दीवानों पे दीवाने समझते हैं

तिरी मख़मूर आँखों को कोई कुछ भी कहे लेकिन

हम उन को साक़ी-ए-दौराँ के पैमाने समझते हैं

न रास आएँगी मुझ को ऐ जहाँ आबादियाँ तेरी

मिरे दिल की लगी को तेरे वीराने समझते हैं

न कुछ अहल-ए-जुनूँ समझे न कुछ अहल-ए-ख़िरद समझे

रुमूज़-ए-ज़िंदगी कुछ फिर भी मस्ताने समझते हैं

'ज़की' अपनों ने तो हम को हमेशा ही सताया है

हक़ीक़त कुछ हमारी फिर भी बे-गाने समझते हैं

(1093) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Tere Naz-o-ada Ko Tere Diwane Samajhte Hain In Hindi By Famous Poet Zaki Kakorvi. Tere Naz-o-ada Ko Tere Diwane Samajhte Hain is written by Zaki Kakorvi. Complete Poem Tere Naz-o-ada Ko Tere Diwane Samajhte Hain in Hindi by Zaki Kakorvi. Download free Tere Naz-o-ada Ko Tere Diwane Samajhte Hain Poem for Youth in PDF. Tere Naz-o-ada Ko Tere Diwane Samajhte Hain is a Poem on Inspiration for young students. Share Tere Naz-o-ada Ko Tere Diwane Samajhte Hain with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.