साग़र-ओ-जाम को छलकाओ कि कुछ रात कटे

साग़र-ओ-जाम को छलकाओ कि कुछ रात कटे

जाम को जाम से टकराओ कि कुछ रात कटे

खाए जाती है ये तन्हाई ये तारीकी-ए-शब

दो घड़ी के लिए आ जाओ कि कुछ रात कटे

चुप तुम्हारी मुझे दीवाना बना देती है

आज लिल्लाह न शरमाओ कि कुछ रात कटे

हाँ ये वादा रहा अब फिर नहीं रोकेंगे कभी

आज कुछ देर ठहर जाओ कि कुछ रात कटे

साज़-ओ-नग़्मा ही सही हाँ मय-ओ-मीना ही सही

साक़िया जाम ही भर लाओ कि कुछ रात कटे

ऐ 'ज़की' हिज्र की रातें नहीं काटे कटतीं

कोई अच्छी सी ग़ज़ल गाओ कि कुछ रात कटे

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