ज़की काकोरवी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का ज़की काकोरवी
नाम | ज़की काकोरवी |
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अंग्रेज़ी नाम | Zaki Kakorvi |
ये रात यूँही बसर हो गई तो क्या होगा
याद इतना है कि मैं होश गँवा बैठा था
याद आए हैं उफ़ गुनह क्या क्या
वो तिरी ज़ुल्फ़ का साया हो कि आग़ोश तिरा
वाए नाकामी-ए-क़िस्मत कि भँवर से बच कर
उलझी थीं जिन नसीम से कलियाँ ख़बर न थी
तू ही बता दे कैसे काटूँ
तिरी जवान उमंगों को हो गया है क्या
शिकवा नहीं दुनिया के सनम-हा-ए-गिराँ का
साफ़ कहिए कि प्यार करते हैं
रुमूज़-ए-इश्क़ की गहराइयाँ सलामत हैं
मुझ को सुकूँ की चैन की पज़मुर्दगी से क्या
मरने के बअ'द कोई पशेमाँ हुआ तो क्या
मंज़िल जिसे समझते थे यारान-ए-क़ाफ़िला
मैं ने तन्हाइयों के लम्हों में
लोग कहते रहे क़रीब है वो
कितने ही फूल चुन लिए मैं ने
कारवाँ तो निकल गया कोसों
जुनूँ के कैफ़-ओ-कम से आगही तुझ को नहीं नासेह
हुस्न जिस हाल में नज़र आया
दूसरों को फ़रेब दे दे कर
दर्द-ए-दिल ने ली न थी करवट अभी
बुरी तक़दीर के रोने से हासिल
अक़्ल ने तर्क-ए-तअल्लुक़ को ग़नीमत जाना
अहल-ए-दिल ने किए तामीर हक़ीक़त के सुतूँ
तिरी जुस्तुजू तिरी आरज़ू मुझे काम तेरे ही काम से
तिरे नाज़-ओ-अदा को तेरे दीवाने समझते हैं
साग़र-ओ-जाम को छलकाओ कि कुछ रात कटे
दिल है बीमार क्या करे कोई
ऐ दिल तिरी आहों में इतना तो असर आए