हरे मौसम खिलेंगे सोना बन के ख़ाक बदलेगी
हरे मौसम खिलेंगे सोना बन के ख़ाक बदलेगी
कहाँ तक ये ज़मीं आख़िर नई पोशाक बदलेगी
हसीं मासूम होंटों पर मोहब्बत के सबक़ ताज़ा
कभी तो आदमी की फ़ितरत-ए-चालाक बदलेगी
रवाँ है आब-ओ-ख़ूँ सर पत्थरों को फोड़ने दीजे
नदी सैलाब की रौ में ख़स-ओ-ख़ाशाक बदलेगी
सलीक़ा ज़िंदगी की वहशतों को मिलने वाला है
क़बा उस की यक़ीनन दामन-ए-सद-चाक बदलेगी
छबकती शबनमीं आँखों में नज्म-ओ-गुल के अफ़्साने
नई करवट अभी शायद हमारी ख़ाक बदलेगी
धुले कपड़ों पे दाग़-ए-ख़ुशबू रंग-ए-ज़िन्दगी रौशन
तिरी क़ुर्बत से दिल की सर-ज़मीन-ए-पाक बदलेगी
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