उतरें गहराई में तब ख़ाक से पानी आए
उतरें गहराई में तब ख़ाक से पानी आए
सब को ऐ दोस्त कहाँ अश्क-फ़िशानी आए
फाँदनी पड़ गई काँटों से भरी बाड़ हमें
जितने पैग़ाम थे फूलों की ज़बानी आए
बस यही सोच के किरदार निभाते जाओ
जाने किस मोड़ पे अंजाम-ए-कहानी आए
एक मुद्दत मैं ख़मोशी से रहा महव-ए-कलाम
तब कहीं जा के ये लफ़्ज़ों में मआ'नी आए
कहीं धोका ही न हो शौक़ नई मंज़िल का
मेरे हमराह कोई राह पुरानी आए
'शाज़' ख़ुद में ही गँवाए हुए ख़ुद को रखना
हाथ जब तक न कोई अपनी निशानी आए
(1172) Peoples Rate This