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मोहब्बत एक ऐसा रास्ता है - ज़करिय़ा शाज़ कविता - Darsaal

मोहब्बत एक ऐसा रास्ता है

मोहब्बत एक ऐसा रास्ता है

चलो जितना ये इतना रास्ता है

हवा है धुँद है और तेज़ बारिश

पहाड़ी है ज़रा सा रास्ता है

कभी उकता गया मैं ख़ुद ही ख़ुद से

कभी अपना ही देखा रास्ता है

ज़माने हो गए हैं चलते चलते

कहाँ जाता ये दिल का रास्ता है

कहीं साँसें चढ़ा देता है मेरी

कहीं आहिस्ता चलता रास्ता है

वही ओढ़ी हुई है धूल अब तक

वही पैरों से लिपटा रास्ता है

ये कैसे मोड़ पर मैं आ गया हूँ

कि चलता हूँ तो चलता रास्ता है

मोहब्बत हौसला है अपना अपना

कहीं मंज़िल किसी का रास्ता है

सभी की अपनी अपनी मंज़िलें 'शाज़'

सभी का अपना अपना रास्ता है

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