किस क़यामत की घुटन तारी है
रूह पर कब से बदन तारी है
कौन ये साया-फ़गन है आख़िर
मेरे सूरज पे गहन तारी है
बात क्या और नई हम सोचें
जब वही चर्ख़-ए-कुहन तारी है
सिर्फ़ हम ही तो नहीं टूटे हैं
रास्तों पर भी थकन तारी है
'शाज़' उड़ता ही चला जाता हूँ
कैसी ख़ुश्बू की लगन तारी है