हम को उस शोख़ ने कल दर तलक आने न दिया
हम को उस शोख़ ने कल दर तलक आने न दिया
दर-ओ-दीवार को भी हाल सुनाने न दिया
पर्दा-ए-चश्म में हर दम तो छुपाए आँसू
बे-क़रारी ने मुझे राज़ छुपाने न दिया
मुझ को आलूदा रखा इस मिरी गुमराही ने
अरक़-ए-शर्म-ए-गुनह भी तो बहाने न दिया
तेरे कहने से मैं अब लाऊँ कहाँ से नासेह
सब्र जब इस दिल-ए-मुज़्तर को ख़ुदा ने न दिया
मनअ है बस कि ख़ुर-ओ-ख़्वाब हमें ग़म में तेरे
मर के सोने न दिया ज़हर भी खाने न दिया
हूँ सितमगर मैं जफ़ाओं से तिरी शर्मिंदा
ना-तवानी ने मुझे सर भी उठाने न दिया
दम का आना तो बड़ी बात है लब पर 'आरिफ़'
ज़ोफ़ ने हर्फ़-ए-शिकायत कभी आने न दिया
(1056) Peoples Rate This