कुछ ऐसे हाल-ओ-माज़ी तेरे अफ़्साने भी होते हैं
कुछ ऐसे हाल-ओ-माज़ी तेरे अफ़्साने भी होते हैं
जो हर माहौल-ए-मुस्तक़बिल को दोहराने भी होते हैं
जो एहसास-ए-जवानी की हसीं ख़ल्वत में पलते हैं
वो जल्वे मंज़र-ए-जज़्बात पर लाने भी होते हैं
ख़मोशी दास्ताँ है इस्मत-ए-उन्वान-ए-हस्ती की
ख़मोशी में निहाँ इस्मत के अफ़्साने भी होते हैं
हरीम-ए-दिल में तुझ को काविश-ए-ग़म हम भी पूछेंगे
तसव्वुर में तिरे अक्सर सनम-ख़ाने भी होते हैं
कभी तूफ़ाँ में रुख़ मौजें बदल देती हैं जब अपना
सफ़ीने साहिलों पर ला के टकराने भी होते हैं
अक़ीदत शर्त है ऐ 'ज़ेब' जज़्बात-ए-अक़ीदत की
हरम की राह में ता'मीर बुत-ख़ाने भी होते हैं
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