इस अदा से इश्क़ का आग़ाज़ होना चाहिए
इस अदा से इश्क़ का आग़ाज़ होना चाहिए
सोज़ भी दिल में ब-क़द्र-ए-साज़ होना चाहिए
जब मोहब्बत को सरापा राज़ होना चाहिए
क्यूँ शिकस्त-ए-दिल की फिर आवाज़ होना चाहिए
आप खुल जाएगा ये बाब-ए-क़फ़स ऐ हम-नशीं
दिल में पैदा जुरअत-ए-पर्वाज़ होना चाहिए
हर नवा-ए-आरज़ू को इज़्तिराब-ए-शौक़ में
दिल के हर पर्दे से हम-आवाज़ होना चाहिए
इज़्न-ए-जल्वा मिल चुका है अब तुझे ए चश्म-ए-शौक़
कामयाब-ए-जल्वा-गाह-ए-नाज़ होना चाहिए
इश्क़ से बे-ए'तिनाई पर कभी इफ़्शा न हो
इतना संजीदा मिरा हमराज़ होना चाहिए
जो मिरे जज़्बात का इज़हार तक होने न दे
हुस्न को इतना ज़माना-साज़ होना चाहिए
हर ख़लिश दिल की बिना-ए-कैफ़ का उन्वान हो
सोज़ में शामिल नशात-ए-साज़ होना चाहिए
मेरे इल्हाम-ए-सुख़न में फ़ैज़ है सीमाब का
'ज़ेब' बज़्म-ए-शेर में मुम्ताज़ होना चाहिए
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