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ज़ब्त-ए-ग़म मुश्किल है और मुश्किल है मुश्किल का जवाब - ज़हीर अहमद ताज कविता - Darsaal

ज़ब्त-ए-ग़म मुश्किल है और मुश्किल है मुश्किल का जवाब

ज़ब्त-ए-ग़म मुश्किल है और मुश्किल है मुश्किल का जवाब

नासेह-ए-मुशफ़िक़ तिरे बस का नहीं दिल का जवाब

आइने में देखते हैं हुस्न-ए-कामिल का जवाब

कोई पूछे क्या वो देंगे जज़्बा-ए-दिल का जवाब

अलविदा'अ कह कर जो देते हैं मिरे दिल का जवाब

आ पड़ी मुश्किल कि क्या हो ऐसी मुश्किल का जवाब

ख़ाक-ए-परवाना हो शायद ज़ब्त-ए-कामिल का जवाब

शम्अ हो सकती है कब मेरे बुझे दिल का जवाब

ऐ मिरे जज़्ब-ए-मोहब्बत तेरी ये बे-ताबियाँ

और ख़मोशी ही ख़मोशी जान-ए-महफ़िल का जवाब

इक सवाल-ए-शौक़ पर उस ने हमें घायल किया

हश्र के दिन देखना है क्या हो क़ातिल का जवाब

नग़्मगी इंकार की भी है सुरूर-अफ़्ज़ा मगर

अब कहाँ है लन-तरानी हुस्न-ए-कामिल का जवाब

उन से आँखें चार कर के 'ताज' मैं खोया गया

इक भरी महफ़िल में बे-ख़ुद कर गया दिल का जवाब

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