किसी मंज़र के पस-मंज़र में जा कर

किसी मंज़र के पस-मंज़र में जा कर

चलो देखें किसी पत्थर में जा कर

घने जंगल ने मुझ पर राज़ खोला

निकल जाता है हर डर डर में जा कर

ख़ुद अपनी ज़ात हो जाती है मादूम

ख़ुद अपनी ज़ात के जौहर में जा कर

मिरे दिल की तमन्ना बन गया है

वो चेहरा मेरी चश्म-ए-तर में जा कर

सिमट जाते हैं मेरे साथ मुझ में

मिरे पाँव मिरी चादर में जा कर

तहय्युर-ख़ेज़ थी उस की फ़साहत

वो जब भी चुप हुआ मिम्बर में जा कर

ये ज़िंदा शहर है तो कैसे 'ज़ाहिद'

मैं मर जाता हूँ अपने घर में जा कर

(1119) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Kisi Manzar Ke Pas-manzar Mein Ja Kar In Hindi By Famous Poet Zahid Shamsi. Kisi Manzar Ke Pas-manzar Mein Ja Kar is written by Zahid Shamsi. Complete Poem Kisi Manzar Ke Pas-manzar Mein Ja Kar in Hindi by Zahid Shamsi. Download free Kisi Manzar Ke Pas-manzar Mein Ja Kar Poem for Youth in PDF. Kisi Manzar Ke Pas-manzar Mein Ja Kar is a Poem on Inspiration for young students. Share Kisi Manzar Ke Pas-manzar Mein Ja Kar with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.