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जम्हूरियत - ज़ाहिद मसूद कविता - Darsaal

जम्हूरियत

राय की आज़ादी

मेरी बाँसुरी का सुर है

जिसे मेरी साँसों से निकाल कर ग़ुबारों में भर दिया गया है

मेरे फूल की ख़ुश्बू को

गंडेरियों की रेढ़ी पर रख कर फ़रोख़्त किया जाता है

मेरी भूक को मेरा भाई आधी रोटी के साथ चुरा लेता है

हर साल मेरे चराग़ की लौ इन्कम टेक्स के साथ काट ली जाती है

और

हर ईद को

मेरे ख़ाली हाथों पर एडवांस तनख़्वाह की ज़कात रक्खी जाती है

वक़्फ़े वक़्फ़े से

मेरी टोपी

चौपाल के बड़े दरख़्त पर लटका दी जाती है

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