मिज़ाज-ए-शे'र को हर दौर में रहा महबूब

मिज़ाज-ए-शे'र को हर दौर में रहा महबूब

खनकता लहजा सुलगता हुआ नया उस्लूब

तलाश और तजस्सुस के बावजूद हमें

वो चीज़ मिल न सकी जो है वक़्त को मतलूब

कोई भी आँख वहाँ तक पहुँच नहीं सकती

छुपा के रक्खे हैं तू ने जहाँ मिरे मक्तूब

अभी तो आस के आँगन में कुछ उजाला है

सलोने चाँद जुदाई के बादलों में न डूब

जो लोग कहते रहे हैं ख़ुदा मोहब्बत है

ख़ुद उन के हाथों ही मासूमियत हुई मस्लूब

'क़ुली'-क़ुतुब नहीं 'ज़ाहिद'-कमाल हूँ ऐ दोस्त

मैं तेरे नाम से किस शहर को करूँ मंसूब

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Mizaj-e-sher Ko Har Daur Mein Raha Mahbub In Hindi By Famous Poet Zahid Kamal. Mizaj-e-sher Ko Har Daur Mein Raha Mahbub is written by Zahid Kamal. Complete Poem Mizaj-e-sher Ko Har Daur Mein Raha Mahbub in Hindi by Zahid Kamal. Download free Mizaj-e-sher Ko Har Daur Mein Raha Mahbub Poem for Youth in PDF. Mizaj-e-sher Ko Har Daur Mein Raha Mahbub is a Poem on Inspiration for young students. Share Mizaj-e-sher Ko Har Daur Mein Raha Mahbub with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.