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सितारे चुप हैं कि नग़्मा-सरा समुंदर है - ज़ाहिद फ़ारानी कविता - Darsaal

सितारे चुप हैं कि नग़्मा-सरा समुंदर है

सितारे चुप हैं कि नग़्मा-सरा समुंदर है

शब-ए-ख़मोश के दिल की सदा समुंदर है

सुकूत-ए-लब को सदाओं का पेश-रौ समझो

कि रूद-बार के आगे खुला समुंदर है

वो देखता है मिरे इज़्तिराब को हँस कर

मैं तेज़-रौ हूँ वो ठहरा हुआ समुंदर है

मह-ओ-नुजूम दिखाते हैं आइना उस को

फ़लक के सामने चेहरा-नुमा समुंदर है

मिटा चले हैं मसाफ़त का नक़्श अहल-ए-तलब

हवा सरों में है और ज़ेर-ए-पा समुंदर है

नज़र में सूरत-ए-साहिल अभी नहीं आई

मिरे सफ़र का हर इक मरहला समुंदर है

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