जहान-ए-तंग में तन्हा हुआ मैं
जहान-ए-तंग में तन्हा हुआ मैं
बहुत अच्छा हुआ रुस्वा हुआ मैं
मिरी आँखों का पहचाना हुआ तू
निगाह-ए-दहर का देखा हुआ मैं
उभर आई हवा की मौज सर में
हरीफ़-ए-मौजा-ए-दरिया हुआ मैं
जबीन-ए-आब की तहरीर दुनिया
हुरूफ़-ए-संग से लिक्खा हुआ मैं
फ़ना के हाथ में मेरी बक़ा है
ख़ुद अपनी ख़ाक से पैदा हुआ मैं
हुई वाबस्ता मुझ से तुर्श-रुई
कि नश्शा हूँ मगर उतरा हुआ मैं
छुपा हूँ आज तक उस की नज़र से
ज़माने भर पे आईना हुआ मैं
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