ज़वाल का दिन
जिस दिन मेरे देस की मिट्टी
कोमल मिट्टी
पत्थर बन कर
महलों और क़िलओं के रूप में ढल जाएगी
उस दिन गंदुम जल जाएगी
जिस दिन मेरे देस के दरियाओं का पानी
ठंडा पानी
बिजली बन कर
शहरों की काली रातों की ज़ीनत का सामान बनेगा
उस दिन चाँद पिघल जाएगा
जिस दिन मेरे देस की हल्की तेज़ हवाएँ
इंसानों के ख़ून से भर जाएँगी
जिस दिन खेतों की ख़ामोशी
बोझल धात की आवाज़ों में खो जाएगी
उस दिन सूरज बुझ जाएगा
जीवन की पगडंडी उस दिन सो जाएगी
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