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बीमार लड़का - ज़ाहिद डार कविता - Darsaal

बीमार लड़का

रहम-ए-मादर से निकलना मिरा बे-सूद हुआ

आज भी क़ैद हूँ मैं

हुक्म-ए-मादर को मैं तब्दील करूँ

माँ की नफ़रत भरी आँखों से कहीं दूर चला जाऊँ मैं

बे-नियाज़ी से फिरूँ

पाप के काँटे चुन कर

रूह नापाक करूँ

गीत शहवत के हवस के सुन कर

ज़ेहन बे-बाक करूँ

ऐसे जीवन की है हसरत अब तक

प्यार... सब कहते हैं वो प्यार मुझे करती है

प्यार की राख तले सोया पड़ा हूँ कब से

झूट कहते हैं मैं बेज़ार हुआ हूँ सब से

फिर लपक उट्ठेगा वो शोला, पुर-उम्मीद हूँ मैं

प्यार की राख तले दब के है जो दूद हुआ

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