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पस्पाई - ज़हीर सिद्दीक़ी कविता - Darsaal

पस्पाई

मुझ को भी ग़ुस्सा आता है

जब कोई साइकल वाला

अगले पहिए से

कीचड़ की इक छाप मेरी पतलून पे दे देता है

जब कोई मोटर वाला

मेरे मुँह पर

मुड़ के के गड्ढों के गंदे पानी के छींटे दे देता है

जब कोई खुले हुए छाते की कमाई से सर में ठोका देता है

जब फ़ुटपाथ पे

मेरे मुक़ाबिल चलने वाला

ऊँचे महलों के तकते तकते मुझ को धक्का देता है

मुझ को भी ग़ुस्सा आता है

लेकिन मैं तो

सूखे बाज़ू

उभरी पस्ली

पिचके गाल और ख़ाली जेबें

देख के अपनी

चुप रहता हूँ

और मेरे ऊपर वाले नोकीले दाँत बिछर जाते हैं

होंटों से बाहर आते हैं

निचले होंट से पहुँच जाते हैं

मेरा सारा ग़ुस्सा निचले होंट के ख़ूँ में थर्राता है

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Paspai In Hindi By Famous Poet Zaheer Siddiqui. Paspai is written by Zaheer Siddiqui. Complete Poem Paspai in Hindi by Zaheer Siddiqui. Download free Paspai Poem for Youth in PDF. Paspai is a Poem on Inspiration for young students. Share Paspai with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.