दर्द तो ज़ख़्म की पट्टी के हटाने से उठा

दर्द तो ज़ख़्म की पट्टी के हटाने से उठा

और कुछ और भी मरहम के लगाने से उठा

उस के अल्फ़ाज़-ए-तसल्ली ने रुलाया मुझ को

कुछ ज़ियादा ही धुआँ आग बुझाने से उठा

अहद-ए-माज़ी भी तो बे-दाग़ नहीं क्यूँ कहिए

पासदारी का चलन आज ज़माने से उठा

वजह मुमकिन है कोई और हो मैं ये समझा

वो तिरी बज़्म में शायद मिरे आने से उठा

ज़ुल्फ़-ए-ज़ोलीदा तो ज़ेबाइश-ए-रुख़्सार हुई

मसअला सारा फ़क़त इक तिरे शाने से उठा

अपनी पा-मर्दी पे वो शख़्स भी नाज़ाँ है 'ज़हीर'

जो गिराने से गिरा और उठाने से उठा

(1065) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Dard To ZaKHm Ki PaTTi Ke HaTane Se UTha In Hindi By Famous Poet Zaheer Siddiqui. Dard To ZaKHm Ki PaTTi Ke HaTane Se UTha is written by Zaheer Siddiqui. Complete Poem Dard To ZaKHm Ki PaTTi Ke HaTane Se UTha in Hindi by Zaheer Siddiqui. Download free Dard To ZaKHm Ki PaTTi Ke HaTane Se UTha Poem for Youth in PDF. Dard To ZaKHm Ki PaTTi Ke HaTane Se UTha is a Poem on Inspiration for young students. Share Dard To ZaKHm Ki PaTTi Ke HaTane Se UTha with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.