बे-बर्ग-ओ-बार राह में सूखे दरख़्त थे

बे-बर्ग-ओ-बार राह में सूखे दरख़्त थे

मंज़िल तह-ए-क़दम हुई हम तेज़-बख़्त थे

हमले चहार सम्त से हम पर हुए मगर

अंदर से वार जितने हुए ज़्यादा सख़्त थे

थे पेड़ पर तो मुझ को बहुत ख़ुशनुमा लगे

तोड़े तो जितने फल थे कसीले करख़्त थे

सोए तो याद क़ौस-ए-क़ुज़ह में सिमट गई

जागे तो जितने रंग थे वो लख़्त लख़्त थे

सर तो छुपाएँ कोई किराए की छत मिले

यूँ इस क़दम की ज़द में कभी ताज-ओ-तख़्त थे

(1066) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Be-barg-o-bar Rah Mein Sukhe DaraKHt The In Hindi By Famous Poet Zaheer Siddiqui. Be-barg-o-bar Rah Mein Sukhe DaraKHt The is written by Zaheer Siddiqui. Complete Poem Be-barg-o-bar Rah Mein Sukhe DaraKHt The in Hindi by Zaheer Siddiqui. Download free Be-barg-o-bar Rah Mein Sukhe DaraKHt The Poem for Youth in PDF. Be-barg-o-bar Rah Mein Sukhe DaraKHt The is a Poem on Inspiration for young students. Share Be-barg-o-bar Rah Mein Sukhe DaraKHt The with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.