Ghazals of Zaheer Siddiqui
नाम | ज़हीर सिद्दीक़ी |
---|---|
अंग्रेज़ी नाम | Zaheer Siddiqui |
ज़ख़्म-ए-ताज़ा बर्ग-ए-गुल में मुंतक़िल होते गए
वजूद उस का कभी भी न लुक़्मा-ए-तर था
सूखे हुए पत्तों में आवाज़ की ख़ुशबू है
ख़्वाब-गाहों से अज़ान-ए-फ़ज्र टकराती रही
जो हौसला हो तो हल्की है दोपहर की धूप
हर गुल-ए-ताज़ा हमारे हाथ पर बैअत करे
हाँ वो मैं ही था कि जिस ने ख़्वाब ढोया सुब्ह तक
दर्द तो ज़ख़्म की पट्टी के हटाने से उठा
चंद मोहमल सी लकीरें ही सही इफ़्शा रहूँ
बे-बर्ग-ओ-बार राह में सूखे दरख़्त थे