Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_eeb0a9c341bb4bff762d0b2a857e8993, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
ज़र्द गुलाबों की ख़ातिर भी रोता है - ज़हीर रहमती कविता - Darsaal

ज़र्द गुलाबों की ख़ातिर भी रोता है

ज़र्द गुलाबों की ख़ातिर भी रोता है

कौन यहाँ पर मैले कपड़े धोता है

जिस के दिल में हरियाली सी होती है

सब के सर का बोझ वही तो ढोता है

सतही लोगों में गहराई होती है

ये डूबे तो पानी गहरा होता है

सदियों में कोई एक मोहब्बत होती है

बाक़ी तो सब खेल तमाशा होता है

दुख होता है वक़्त-ए-रवाँ के ठहरने से

ख़ुश होने को वही बहाना होता है

शरमाते रहते हैं गहरे लोग सभी

दरिया भी तो पानी पानी होता है

नूर टपकता है ज़ालिम के चेहरे से

देखो तो लगता है कोई सोता है

(959) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Zard Gulabon Ki KHatir Bhi Rota Hai In Hindi By Famous Poet Zaheer Rahmati. Zard Gulabon Ki KHatir Bhi Rota Hai is written by Zaheer Rahmati. Complete Poem Zard Gulabon Ki KHatir Bhi Rota Hai in Hindi by Zaheer Rahmati. Download free Zard Gulabon Ki KHatir Bhi Rota Hai Poem for Youth in PDF. Zard Gulabon Ki KHatir Bhi Rota Hai is a Poem on Inspiration for young students. Share Zard Gulabon Ki KHatir Bhi Rota Hai with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.