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शब-ए-ग़म याद उन की आ रही है - ज़हीर काश्मीरी कविता - Darsaal

शब-ए-ग़म याद उन की आ रही है

शब-ए-ग़म याद उन की आ रही है

चराग़-ए-दिल की लौ थर्रा रही है

बयान-ए-दोस्त नासेह की ज़बाँ से

तबीअत और मचली जा रही है

कहाँ नक़्श-ए-कफ़-ए-पा ढूँडते हो

सदा-ए-पा तो दिल से आ रही है

बड़े दिल-कश हैं दुनिया के ख़म ओ पेच

नज़र में ज़ुल्फ़ सी लहरा रही है

हुई मुद्दत कि दिल आतिश-ज़दा था

फ़ुग़ाँ से आज तक आँच आ रही है

शब-ए-वादा ख़यालों के उफ़ुक़ पर

गुरेज़ाँ सी ज़िया थर्रा रही है

मोहब्बत को कहाँ ताब-ए-नज़ारा

जवानी आप ही शर्मा रही है

सुकूत-ए-शाम की पहनाइयों से

सदा उस अजनबी की आ रही है

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Shab-e-gham Yaad Unki Aa Rahi Hai In Hindi By Famous Poet Zaheer Kashmiri. Shab-e-gham Yaad Unki Aa Rahi Hai is written by Zaheer Kashmiri. Complete Poem Shab-e-gham Yaad Unki Aa Rahi Hai in Hindi by Zaheer Kashmiri. Download free Shab-e-gham Yaad Unki Aa Rahi Hai Poem for Youth in PDF. Shab-e-gham Yaad Unki Aa Rahi Hai is a Poem on Inspiration for young students. Share Shab-e-gham Yaad Unki Aa Rahi Hai with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.