शब-ए-ग़म याद उन की आ रही है
शब-ए-ग़म याद उन की आ रही है
चराग़-ए-दिल की लौ थर्रा रही है
बयान-ए-दोस्त नासेह की ज़बाँ से
तबीअत और मचली जा रही है
कहाँ नक़्श-ए-कफ़-ए-पा ढूँडते हो
सदा-ए-पा तो दिल से आ रही है
बड़े दिल-कश हैं दुनिया के ख़म ओ पेच
नज़र में ज़ुल्फ़ सी लहरा रही है
हुई मुद्दत कि दिल आतिश-ज़दा था
फ़ुग़ाँ से आज तक आँच आ रही है
शब-ए-वादा ख़यालों के उफ़ुक़ पर
गुरेज़ाँ सी ज़िया थर्रा रही है
मोहब्बत को कहाँ ताब-ए-नज़ारा
जवानी आप ही शर्मा रही है
सुकूत-ए-शाम की पहनाइयों से
सदा उस अजनबी की आ रही है
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